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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] पंचम सर्ग उसने स्वर्ग को शब्द से भर देने वाले उस देवताओ को प्रभु के स्नात्रोत्सव की सूचना देने के घोषणा को ||२५|| [ १०१ घण्टे को बजाया और लिये उच्च स्वर मे यह हे प्रमुख देवताओ | सावधान होकर सुनो, में कुछ कह रहा हूँ । यह इन्द्र जिनेश्वर का अभिषेक करने के लिये आपको बुला रहा है ॥२६॥ सारे देवता 'उसके शब्द रूपी रोमाचित हो गये जैसे बादल से सिक्त हैं ||२७|| अमृत के कानो मे पडने से इस प्रकार कदम्ब के वृक्ष चारो ओर खिल उठते तत्पश्चात् अतीव स्नेहमयी तथा चचल आंखो वाली देवागनाओ के द्वारा देखे जाते हुए इन्द्र ने, अपने अनुचरो के साथ, विमान मे बैठकर प्रभु का जन्माभिषेक करने के लिये प्रस्थान किया | २८ || सामानिक आदि सारे देवता, परिवार सहित, इस प्रकार उसके पीछे गये जैसे सूर्य की किरणें सूर्य के पीछे मोर हाथियो का झुण्ड यूथ के नेता के पीछे चलता है ॥२६॥ तव भाद्रपद मे उमडे हुए सायकालीन वादलो की शोभा को धारण करते हुए देवताओ के विविधरगी विमान आकाश के आगन मे चलने लगे ||३०|| भौंरो के समान नीली छवि वाले आकाश ने, देवताओ के कमनीय एव विशाल विमानो के कारण, जिनसे किरणें बिखर रही थी, फूलो से भरे उपवन की शोभा प्राप्त की ||३१|| इन्द्र ने मनुष्यलोक मे दशार्हराज समुद्रविजय के महल मे जाकर शिवादेवी को ऐसे सुला दिया जैसे रात के समय चन्द्रमा कमलिनी को वन्द कर देता है ||३२|| तव इन्द्र चोर की तरह, चिन्तामणि तुल्य जिनेन्द्र को लेकर और वहाँ उनका एक प्रतिरूप रखकर तत्काल मेरुपर्वत की और चल पडा ॥३३॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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