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________________ ६६ ] चतुर्थ सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् उन्होंने प्रसूति-गृह से पूर्व, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओ मे तीन पवित्र कदलीगृह बनाकर उनके अन्दर एक चौकोर सिंहासन रखा ॥३६॥ कदलीगृह के भीतर, फैलती हुई किरणों से व्याप्त वह रत्नो का सिंहासन इस प्रकार शोभित हुया जैसे कमल के कोमल पत्तो से ढके स्वच्छ जल मे चन्द्रमा का प्रतिविम्ब ॥४०॥ प्रभु को दोनो हाथो मे लेकर तथा शिवादेवी को बांह का सहारा देकर विधि की ज्ञाता वे कुमारियों उन्हे पहले दक्षिण दिशा के कदलीगृह मे ले गयी ॥४॥ वहां जिनेश्वर तथा जिन माता को सिंहासन पर बैठाकर तथा उनकी मालिश करके उन्होंने, दासियो की तरह, अद्भुत द्रव्यो से उन दोनो के शरीर पर लेप किया ॥४२॥ फिर पूर्व दिशा के कदलीगृह मे ले जाकर उन देवियो ने नहलाने योग्य उन दोनो को पवित्र जल से स्नान कराया। देवता भी अधिक पुण्यशाली लोगो के सेवक होते हैं ।।४३|| तत्पश्चात् कन्याओ ने उनके शरीर पर चन्दन और काफूर का लेप किया । यह बहुत आश्चर्य की बात है कि उनका भी (कुमारियो का) सारा सन्ताप नष्ट हो गया ।।४४॥ इसके बाद कुमारियो ने तीर्थंकर और उनकी माता को कोमल वस्त्र पहना कर उन्हें निर्मल भूषणो से सजाया जैसे देववालाएं दो कल्पलतामो को सजाती हैं ॥४५॥ वे आभूषण ससार के भूषण प्रभु को पाकर शोभा से चमक उठे । निश्चय ही गुणवान् की सगति परम समृद्धि का कारण होती है ।।४६।। रमणीय आकृति वाली शिवा अलौकिक भूषण पहनकर और अधिक। सुन्दर लगने लगी । नीलमणि, अकेली ही, सुन्दर है, सोने मे जडे जाने पर तो - कहना ही क्या ? ॥४७॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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