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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] चतुर्थ सर्ग [ ६३ ! देवताओं, देवेन्द्रो तथा राजाओ द्वारा पूजित चरणो वाले हे प्रभु तुम्हारी जय हो । ससार को आनन्दित करने वाले पुत्र की माता हे शिवादेवी ! तुम्हे नमस्कार ||१०| गौरी के पुत्र ( गणेश का पेट लम्बा है, लक्ष्मी का पुत्र ( काम शरीर हीन है । हे सुन्दर शरीर वाले पुत्र की माता । तुम्हारी तुलना किसके साथ की जाय ॥११॥ १ कल्पलता सदा अज्ञान को जन्म देती है । सर्वज्ञ को जन्म देने वाली हे माता ! उससे तुम्हारी तुलना कैसे की जा सकती है ? || १२ || आज स्त्री जाति, जिससे समस्त गुणो के भण्डार जगत्प्रभु का जन्म हुआ है, निन्दनीय होती हुई भी तीनो लोको मे प्रशमा के योग्य वन गयी 1 ॥१३॥ हे माता ! यह तुम्हारा पुत्र पुरुषो मे सर्वोत्तम है । क्या सुमेरु पर्वत के वनो में सभी वृक्ष कल्पवृक्ष होते हैं ? ||१४|| हे देवि । तुम डरो मत। जिनेश्वर का जन्म हुआ जानकर हम दिक्कुमारियां उनका सूतिकर्म करने के लिये आई हैं ||१५|| इस प्रकार अपना परिचय देकर उन्होंने प्रसूतिगृह के चारो ओर एक योजन तक सर्वत वायु से अपवित्र कणो को दूर कर दिया ॥ १६ ॥ फिर वे जादू की तरह तुरन्त सवर्न वायु को रोक कर जिनेन्द्र और माता का गुणगान करती हुई, वहाँ (सूतिगृह मे) बैठ गयी || १७ ॥ पाताललोक से भी आठ दिक्कुमारियाँ प्रसूतिगृह मे आई । उनके जघनो पर करवनी के घु घओ का शब्द हो रहा था, वक्ष पर मालाएं हिल रही थी, वे रत्नो के आभूषणों से विभूषित थी और ऐसी लगती थी मानो साक्षात् कल्पलताएँ ही उनके रूप मे परिवर्तित हो गयी हो ॥ १८-१६॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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