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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] तृतीय सर्ग [ ८६ उसने उन ज्योतिषियो को इस प्रकार कहा-आज आधी रात के समय रानी ने गज आदि चौदह स्वप्न देखे हैं। बतलाओ, उनका क्या फल होगा? ॥१७॥ पहले उन चतुर ज्योतिषियो ने राजा द्वारा वताए गये उत्तम स्वप्नो पर आपस मे विचार-विमर्श किया, फिर इस प्रकार कहा क्योकि बुद्धिमान लोग विचार कर ही बात कहते हैं ॥१८॥ राजन् ! ये शुभ तथा उत्तम स्वप्न वृद्धि के सूचक हैं । हम इनका फल बतलाने में असमर्थ हैं क्योकि इस विषय मे वृहस्पति की वाणी भी जड है ॥१६॥ फिर भी हम शास्त्र के अनुसार इन पर कुछ विचार करते हैं। क्या अन्धा भी आँखो वाले का हाथ पकड़ कर ठीक रास्ते पर नही चलता २० हे यादवराज | इसलिए सुनो, जो स्त्री इन स्वप्नो को देखती है, उसकी कोख रूपी कमल के अन्दर ब्रह्मा की भांति चक्री अथवा जिन अवतीर्ण होता है ॥२१॥ राजन् । शास्त्र के अनुसार तथा अपनी बुद्धि के सामथ्र्य से हमने यह विचार किया है (अर्थात् हमारा यह विचार है) कि देवी के उदर मे जिनेन्द्र अवतरित हुए हैं, जैसे सुमेरु पर्वत के कुज मे कल्पवृक्ष ॥२२॥ चौसठ देवाधिपति इन्द्र, नौकरो की तरह, सहर्ष उसकी सेवा करेंगे। अन्न-जल-भोजी वेचारे अन्य राजाओ की तो वहाँ गिनती क्या ? ॥२३॥ हे स्वामिन् | साढे आठ दिन सहित नौ शुभ मास बीतने पर रानी, तीनो लोको द्वारा पूसनीय पवित्र पुत्र को जन्म देगी ॥२४॥ ज्योतिपियो के वे हृदयग्राही निर्धान्त (स्पष्ट) वचन सुनकर राजा ने, महान् हर्ष से दूना होते हुए, वार-बार 'तथास्तु' कहा ॥२५॥ इसके बाद धनवान् राजा उन विद्वान् ज्योतिषियो को जीवन-पर्यन्त धन देता रहा, जैसे कल्पवृक्ष मनुष्यो को, और निधियो की राशि चक्रचारियो को ॥२६॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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