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________________ नेमिनाथ-चरित्र वेश बदल कर वसुदेव नगरके बाहर निकल गया। नगरके बाहर एक श्मशान था। वहॉ चिता तैयार कर उसने किसी अनाथकी लाश उसमें जला दी। इसके बाद स्वजनोंको शान्त करनेके उद्दशसे एक कागजमें दो श्लोक लिखकर उसे पासके खंभेमें लटका दिया। वे श्लोक यह थे : "दोषत्वेनाभ्यधीयन्त, गुरूणां यद्गुणा जनैः। इति जीवन मृतं मन्यो, वसुदेवोऽनलेऽविशत् ॥ १॥ ततः सन्तमसन्तं वा, दोषं मे स्ववितर्कितम् । सर्वे सहध्वं गुरवः, पौरलोकाच मूलतः ॥२॥ अर्थात् :-"गुरुजनोंके समक्ष. महाजनोंने गुणोंको दोष रूपमें प्रकट किये इसलिये मैंने अपनेको जीवन्मृत मानकर अग्निमें प्रवेश कर लिया है। अपनी धारणानुसार, मेरा दोष हो या न हो, किन्तु गुरुजन और नगरवासियोंसे मेरी यही प्रार्थना है, कि वे मेरा अपराध क्षमा करें और मुझे भूल जायें।" इतनी कारवाई करनेके बाद वसुदेव ब्राह्मणका वेश धारणकर वहाँसे एक ओर चल पड़े। मार्गमें उन्हें एक
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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