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________________ Momemama चौथा परिच्छेद दिया और वे स्वयों एक गुफामै छिप रहे । पल्लीपति समझा कि शंखकुमार समस्त सैनाके साथ दुर्गमें चले गये है। इसलिये अब उन्हें घेर लेना चाहिये। यह सोच कर उसने दुर्गको चारों औरसे घेर लिया । शंखकुमारने यही समय उपयुक्त समझ कर बाहरसे उस पर आक्रमण कर दिया। अब उस पर दोनों ओरसे भार पड़ने लगी। . एक ओरसे उस पर दुर्गकी सेना टूट पड़ी और दूसरी औरंसें शंखकुमारकी सेनाने धावा बोल दिया। दोनों सेनाओंके बीचमें वह बुरी तरह फंस गया। जब उसने देखा कि वचनेका कोई उपाय नहीं हैं, तब अत्यन्त दौनता पूर्वक कमें कुठार डालं कर, वहे शंखकुमारकी शरणमें आया। उसने कहा :-हे स्वामिन् ! मैं अपनी पराजय स्वीकार कर आपकी शरणमें आया हूँ । अब मैं आपको दास होकर रहूँगा। आप मुझसें जो चाह सो दण्ड ले लीजये और मेरा यह अपाराध क्षमा कीजिये." ".:... पल्लीपतिकी यह प्रार्थना सुनकर शंखकुमारने उससे वह सब माल लें आने को कहा, जो उसने आसपासके . . . '.. .
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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