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________________ PN तीसरा परिच्छेद पत्नीके साथ आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगे। राजा जितशत्रुके मन्त्रीकी भी एक कन्या थी, जिसकी अवस्था विवाह करने योग्य हो चुकी थी। इस बीचमें उसने उसका ब्याह विमलबोधके साथ कर दिया जिससे उसके जीवन में भी आनन्द की बाढ़ आ गयी। दोनों मित्रः दीर्घकाल तक अपने श्वसुरका आतिथ्य ग्रहण करते रहे। राजकुमार अपराजितकी इस विजय और विवाहका समाचार धीरे धीरे राजा हरिनन्दीके कानों तक जा पहुँचान उन्होंने रानकुमारका पता पाते ही उसके पास एक दूत भेजा। राजकुमारने उसका स्वागत कर अपने माता-पिताका कुर्शल-समाचार पूछा। उचरमें इतने सजल नेत्रोंसे कहा :- "हे राजकुमार ! वे किसी तरह जीते हैं यही कुशल समझिये। वैसे तो वे आपके वियोगसे मृतप्राय हो रहे हैं। रात दिन वे खिन्न और दुःखित रहते हैं। किसी काममें उनका जी नहीं लगता । आनन्द जैसी वस्तु तो मानो अब उनके जीवन में है ही नहीं। बीच बीचमें जब कभी आपके सम्बन्धकी कोई उड़ती हुई खवर ..
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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