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________________ ५६ नेमिनाथ चरित्र करना सहज नहीं है, तब एक दिन वे चुप-चाप वहाँसे चल पड़े। जिस समय राजकुमार अपराजित और मन्त्री- पुत्र कोसलराजके नगरसे बाहर निकले, उस समय रातके बारह बज चुके थे। चारों ओर घोर सन्नाटा था। नगर निवासी निद्रादेवीकी गोद में पड़े हुए आनन्दपूर्वक विश्राम कर रहे थे, इसलिये उन दोनोंको नगर- त्याग करने में किसी प्रकार की कठिनाईका सामना न करना पड़ा। दोनोंने सहर्ष हाँसे अपने नगरकी राह ली । : रास्तेमें एक स्थानपर कालिदेवीका मन्दिर था । उसके निकट पहुँचने पर राजकुमारने किसीके रोनेकी आवाज सुनी। उन्हें ऐसा मालूम हुआ मानो कोई स्त्री यह कहकर रो रही है कि- " क्या यह भूमि पुरुष रहित हो गयी है ? क्या इस पृथ्वीपर अब कोई ऐसा वीर नहीं, जो इस हत्यारेसे मेरी रक्षा कर सके ?" वे शीघ्रही लपक कर उस स्थानमें पहुँचे । उन्होंने देखा कि मन्दिरके अन्दर एक अग्निकुण्डके पास एक स्त्री बैठी हुई है और उसीके सामने एक विद्याघर नंगी तलवार लिये खड़ा है।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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