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________________ ४८ नेमिनाथ-वरित्र इसलिये उसने अनेक खचर राजाओंको वशमें कर अपने राज्यका विस्तार किया। साथ ही अपने प्रजा-प्रेम और अपनी न्याय-प्रियताके कारण वह शीघ्र ही प्रजाका प्रियपात्र बन गया। चित्रगतिके एक जागिरदारका नाम मणिचूड़ था। उसकी मृत्यु हो जानेपर उसके शशि और शुर नामके दोनों पुत्र राज्य प्राप्तिके लिये आपसमें युद्ध करने लगे। चित्रगतिने उनके राज्यका बंटवारा कर दिया, ताकि सदाके लिये उनके चैमनस्यका अन्त हो जाय। उन्होंने उन्हें समझा-बुझाकर भी राह पर लानेकी चेष्टा की। उस समय तो ऐसा मालूम हुआ कि इस व्यवस्थासे उन्हें सन्तोष हो गया है और अब वे एक दूसरेसे न लड़ेंगे, परन्तु शीघ्रही उन दोनोंमें फिर घोर युद्ध हो गया, जिससे उन दोनोंको अपने-अपने प्राणोंसे हाथ धोना पड़ा। चित्रगतिके हृदय पर इस घटनाका अत्यधिक प्रभाव पड़ा। उनका हृदय वैराग्यसे पूर्ण हो गया। वे अपने मनमें कहने लगे :-"अहो! यह संसार बहुतही विषम है। इसमें कोई सुखी नहीं।" वे ज्यों-ज्यों विचार
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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