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________________ ८४४ नेमिनाथ-चरित्र दोनों नेत्रोंसे अश्रुधारा बहाने लगे। किन्तु वसुदेव, देवकी और रोहिणीने उनकी ओर ध्यान न देकर कहा :"अब हम त्रिगजतके गुरु नेमिनाथकी शरण स्वीकार करते हैं। हमने इसी समय चतुर्विध आहारका प्रत्याख्यान किया है। हमलोग अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु और आर्हत धर्मकी शरणमें हैं। अब इस संसारमें हमारा कोई नहीं और हम किसीके नहीं।" इस प्रकार आराधना कर वे सब नमस्कार मन्त्रका स्मरण करने लगे। यह देख, द्वैपायनने उन तीनोपर मेघकी भाँति अग्नि वर्षा की, जिससे मृत्यु प्राप्त कर वे स्वर्गके लिये प्रस्थान कर गये। ____ अब कृष्ण और बलरामके दुःखका वारापार न रहा। वे दोनों नगरके बाहर एक पुराने वागमें गये। वहाँसे वे दोनों जलती हुई नगरीका हृदयभेदक दृश्य देखने लगे। उस समय माणिक्यकी दीवालें पाषाणके टुकड़ोंकी तरह चूर्ण हो रही थीं, गोशीर्षचन्दनके मनोहर स्तम्भ धाँय धाँय जल रहे थे, किलेके कंगूरे भयंकर शब्दके साथ टुट टूट कर गिर रहे थे, बड़े बड़े मन्दिर और प्रासाद
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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