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________________ - - - नेमिनाक्-चरित्र सोमशर्माकी पुत्री थी और एक क्षत्राणीके उदरसे उल्न्न हुई थी। इच्छा न होने पर भी माता और भाइयोंकी बात माननेके लिये गजसुकुमालको उससे भी न्याह करना पड़ा। ___ उस न्याहके कुछ ही दिन बाद सहसासवनमें नेमिप्रभुका शुभागमन हुआ। उनके आगमन समाचार सुन गजसुकुमाल भी स्त्रियों सहित उनकी सेवा में उपस्थित हो, बड़े प्रेमसे उनका धमोपदेश सुनने लगा। धोपदेश सुनकर उसे वैराग्य आगया, फलतः बड़ी कठिनाईसे मातापिता और भाइयोंको समझा कर, उसने दोनों स्त्रियों सहित प्रभुके निकट दीक्षा ले ली। उसके इस कार्यसे उसके मातापिता तथा कृष्णादिक भाइयोंको बड़ाही दुःख हुआ और वे उसके वियोगसे व्याकुल हो विलाप करने लगे। ___ इसके बाद संध्याके समय भगवानकी आज्ञा लेकर गजसुकुमाल स्मशानमें जाकर कायोत्सर्ग करने लगा। उस समय सोमशर्माने उसे देख लिया। देखते ही उसके बदनमें मानों आग लग गयी। वह क्रोध-पूर्वक अपने
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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