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________________ ७१८ नेमिनाथ चरित्र क्या अवस्था होगी १ . मुझे कोई, ऐसा उपाय करना चाहिये, जिससे उन्हें मेरा भुजबल तो मालूम हो जाय, किन्तुं उन्हें किसी प्रकार कष्ट न हो। यह सोचकर उन्होंने कृष्णसे कहा :-"आप जो बाहुयुद्ध पसन्द करते हैं, वह बहुतही मामूली है। वारंवार जमीनपर लोटनसे भली भाँति बलकी परीक्षा नहीं हो सकती। मेरी समझमें, हमलोग एक दूसरेकी भुजाको झुकाकर अपने अपने भुजबलका परिचय दें, तो वह बहुतही अच्छा हो सकता है।" . . . . . ___ कृष्णने नेमिकुमारका. यह प्रस्ताव स्वीकार कर वृक्ष शाखाकी भाँति पहले अपनी भुजा फैला दी और नेमिकुमारने उसे कमल-नालकी भाँति क्षणमात्रमें झुका. दी। इसके बाद उसी तरह नेमिकुमारने अपनी भुजा कृष्णके हैसामने फैला दी, किन्तु अपना समस्त बल लगा देने । पर भी कृष्ण- उसे झुका न सके । इससे वे कुछ लजित । हो गये, किन्तु इस लजाको उन्होंने मनमें ही छिपाकर नेमिकुमारको आलिङ्गन करते हुए कहा :-"भाई ! तुम्हारा यह बल देखकर आज मुझे असीम आनन्द हुआ
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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