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________________ - सोलहवाँ परिच्छेद ६७१ क्रोध आया और उसने दूसरा धनुष लेकर युधिष्ठिर पर इतनी वाणवृष्टि की, कि वे उनके कारण वर्षाकालके सूर्यकी भॉति छिप गये। युधिष्ठिर इससे कुछ विचलित हो उठे और उन्होंने उस पर विजलीके समान एक भयंकर शक्ति छोड़ दी। जिस प्रकार अग्निकी लपटमें पड़ने पर गोह तत्काल जल मरती है, उसी प्रकार उस शक्तिने शल्यकी जीवन-लीला समाप्त कर दी। उस शक्तिके उरसे और भी अनेक राजा उस समय रणक्षेत्रसे भाग खड़े हुए। भीमने भी दुर्योधनके भाई दुःशासनको छ त कपटकी याद दिलाकर क्षणमात्रमें मार डाला। इसी प्रकार शकुनि और सहदेवमें भी बहुत देर तक माया और शस्त्रयुद्ध होता रहा। अन्तमें सहदेवने भी उस पर एक घातक वाण छोड़ा, परन्तु वह शकुनि तक न पहुँचने पाया। दुर्योधनने क्षत्रिय व्रतका त्याग कर वीचहीमें तीक्ष्ण वाणसे उसे काट डाला। यह देखकर सहदेवने ललकार कर उससे कहा :-'हे दुर्योधन ! घु तकी भाँति रणमें भी तू छल करता है। परन्तु यह कायरोंका काम है, वीरपुरुषोंका नहीं। तुम दोनों
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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