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________________ १५८ नेमिनाथ-चरित्र आपके सामने आ उठे हैं। उनका वास्तविक उद्देश्य आपसे युद्ध करना नहीं, अपनी रक्षा करना है। मेरी धारणा है कि यदि आप अब भी युद्धका विचार छोड़ दें, तो यह सब लोग द्वारिका वापस चले जायेंगे। मेरी समझमें इससे दोनों दलोंको लाभ हो सकता है।" ___ मन्त्रीकी यह बात सुनकर जरासन्ध क्रुद्ध हो उठा। वह कहने लगा :-'हे दुराशय ! मालूम होता है कि कपटी यादवोंने तुझे फोड़कर अपने हाथमें कर लिया है। इसीलिये तू उनके बलकी प्रशंसा कर मुझे डराता है। परन्तु यह सब व्यर्थ है। हे कायर ! शृगालोंकी आवाज सुनकर सिंह कभी डर सकता है ? हे दुर्मते ! यदि तुझमें युद्ध करनेका साहस न हो, तो तू युद्धसे दूर रह सकता है, किन्तु ऐसी बात कहकर दूसरोंको युद्धसे दूर रखनेकी चेष्टा क्यों करता है ? मैं तो अकेला ही इनके लिये काफी हूँ।" - जरासन्धके यह वचन सुनकर वेचारा हँसक मन्त्री चुप हो गया। किन्तु डिम्भक नामक खुशामदी मन्त्रीने कहा :- "हे राजन् ! आपका कहना यथार्थ है।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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