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________________ नेमिनाथ चरित्र इसके बाद दूसरेही दिन शाम्बकुमारको अपने साथ लेकर प्रद्युम्नकुमार भोजकटपुरमें जा पहुँचे। वहाँ वे दोनों चाण्डालका वेश धारणकर नगर में घूम-घूमकर किन्नरकी भाँति मधुरस्वरसे गायन करने लगे । उनका गायन इतना सुन्दर, इतना मधुर और इतना मोहक होता था कि उसे जो सुनता था वही मुग्ध हो जाता था। धीरे धीरे इनकी बात राजा रुक्मिके कानोंतक पहुँची । फलतः उसने भी उनको राज भवनमें बुलाकर सपरिवार इनका गायन सुना । ६२० . गायन समाप्त होनेपर उसने उन दोनोंको काफी ईनाम देकर पूछा :- "तुम लोग यहाँ किस स्थानसे आ रहे हो ?" माया चाण्डालोंने कहा :- " राजन् ! हमलोग स्वर्गसे द्वारिका नगरी देखने आये थे और इस समय वहींसे आ रहे हैं ।" इधर अपने पिताके पास ही राजकुमारी वैदर्भी बैठी हुई थी। उसने उत्सुकतापूर्वक उनसे पूछा :- "क्या तुमलोग कृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न भी जानते हो !"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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