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________________ ५२६ नेमिनाथ-चरित्र . कृष्णको यह संवाद सुनाकर नारद तो अन्यत्रके लिये प्रस्थान कर गये। इधर कृष्णने जाम्बवतीको अपनी रानी बनाना स्थिर किया, इसलिये वे अपनी सेनाको लेकर वैताब्य पर्वत पर जा पहुंचे। वहाँपर उन्होंने देखा कि जाम्बवती अपनी सखियोंके साथ खेल रही है। वह वास्तवमें वैसी ही रूपवती थी, जैसा नारदने बतलाया था। मौका मिलते ही उसे अपने रथपर बैठा कर कृष्णने द्वारिकांकी राह ली। इससे चारों ओर घोर कोलाहल मच गया। जाम्बबानने तलवार खींचकर कृष्णका पीछा किया, किन्तु अनाधृष्टिने उसे पराजित कर बन्दी बना लिया। वह उसी अवस्थामें उसे कृष्णके पास ले गया। जाम्बवानने देखा कि अब कृष्णसे विरोध करनेमें कोई लाभ नहीं है, तब उसने जाम्बवतीका विवाह उनके साथ सहर्ष कर दिया। इसके बाद, अपने इस अपमानसे खिन्न हो उसने दीक्षा ले ली। जाम्बवानके पुत्र विष्वक्सेन और जाम्बवतीको अपने साथ लेकर कृष्ण द्वारिका लौट आये। वहाँ
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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