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________________ MARAAN तेरहवा परिच्छेद साथ यहाँ आयी हैं, उनके पिता तथा गुरुजनोंने घड़ी धूमके साथ, आपको विपुल सम्पत्ति दे कर आपका न्याह किया है, किन्तु मुझे तो आप अकेले ही एक बन्दिनीकी भाँति यहाँ ले आये हैं। हे प्रियतम ! इससे आपकी वह स्त्रियाँ मेरा उपहास तो न करेंगी ?" ___ कृष्णने कहा :-'नहीं प्रिये तुम्हारा कोई उपहास न करेगा। अन्तःपुरमें मैं तुमको औरोंसे अधिक ऊँचा स्थान प्रदान करूँगा, ताकि किसीको वैसा करनेका साहस ही न होगा!" . .. इस प्रकार रुक्मिणीको सान्त्वना देते हुए कृष्ण अपने राजमन्दिरमें आ पहुँचे। तदनन्तर उन्होंने सत्यभामाके महलके निकट श्रीप्रासाद नामक महलमै रुक्मिणीके लिये रहनेकी व्यवस्था कर दी और उसके साथ गान्धर्व विवाह कर वह रात्रि क्रीड़ा कौतुकमें व्यतीत की। ___ कृष्णने रुक्मिणीके वासस्थानमें जानेकी सबको मनाई कर दी थी, इसलिये कोई भी उसे देख न पाता था। यह प्रतिविन्ध सत्यभामाके लिये असह्य हो पड़ा। वह रुक्मिणीके लिये व्याकुल हो उठी, उसने उसे देखनेके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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