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________________ ४६० AM नेमिनाथ-चरित्र अपने अपने स्थानसे आकर शिवादेवीका प्रसूति-कर्म किया। इसके बाद पञ्चरूप धारण कर सौधर्मेन्द्र भी वहाँ आये। उन्होंने एक रूपसे प्रभुका प्रतिबिम्ब माताके पास रखकर, उन्हें अपने हाथोंमें उठा लिया, और दो रूपोंसे दोनों ओर दो चमर, तथा एकसे छत्र धारण किया, और पॉचवें रूपसे उनके आगे आगे वज्र उछालते हुए, उन्हें भक्ति-पूर्वक मेरु पर्वतके शिखर पर अति प्राण्डकंवला नासक शिला पर ले गये। वहाँ प्रभुको अपनी गोद में स्थापित कर शक्रने एक सिंहासन पर स्थान ग्रहण किया और अच्युत आदि तिरसठ इन्द्रोंने भक्तिपूर्वक भगवानको स्नान कराया। फिर शक्रन्द्रने भी भगवानको ईशानेन्द्रकी गोदमें बैठा कर उन्हें विधिपूर्वक स्नान कराया। . भगवानको स्नान करानेके बाद शक्रन्द्रते दिव्य पुष्पों द्वारा उनकी पूजा और आरती की। इसके बाद हाथ जोड़कर उन्होंने इस प्रकार उनकी स्तुति की:'हे मोक्ष गामिन् ! हे शिवादेवीकी कुक्षिरूपी सीपकें मुक्ताफल !, हे प्रभो! हे शिवादेवीके रन ! आपके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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