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________________ ४५२ नेमिनाथ चरित्र दो वृक्षों में ऊखल फँसाकर उन्हें उखाड़ डाला है ।" यशोदा यह आश्चर्यजनक संवाद सुनकर उसी समय वहाँ आ पहुँची । नन्द भी कहींसे दौड़ आये । कृष्णको 1 सकुलश देखकर उनके आनन्दका वारापार न रहा। उन्होंने धूलि धूसरित कृष्णको गलेसे लगाकर वारंवार उनके मस्तक पर चुम्बन किया। उस दिन कृष्णके उदरमें दाम (रस्सी) बांधा गया था, इसलिये उस दिनसे सब ग्वाल-बाल कृष्णको दामोदर कहने लगे । श्रीकृष्ण गोप गोपियोंको बहुत ही प्यारे थे, इसलिये वे उन्हें रात दिन गोदमें लिये घूमा करती थीं । ज्यों ज्यों वे बड़े होते जाते थे, त्यों त्यों उनके प्रति लोगोंका स्नेह भी बढ़ता जाता था । कृष्णका स्वभाव बहुत ही चश्चल था, इसलिये जब वे कुछ घड़े हुए, तब गोपियोंकी मटकियोंसे दूध दही उठा लाने लगे, ऐसा करते समय वे कभी कभी उनकी मटकियाँ भी फोड़ डालते थे, तथापि गोपियाँ उनसे थीं । वे चाहे बोलते चाहे मारते, चाहे दही- मक्खन असन्तुष्ट न होती · + खा जाते, चाहे कोई नुकसान कर डालते, किन्तु हर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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