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________________ दसवाँ परिच्छेद ४२७ सुन्दर पुत्रको जन्म दिया । पश्चात् मागध आदिने बड़ी धूमधामसे उसका जन्मोत्सव मनाया । वह बालक सबको प्यारा मालूम होता था, इसलिये वसुदेवने उसका नाम राम रक्खा। यही राम आगे चलकर बलराम और बलभद्रके नामसे विख्यात हुआ। जब वह कुछ बड़ा हुआ तो वसुदेवने उसकी शिक्षा दीक्षाके लिये एक आचार्य नियुक्त कर दिया। रामने उसके निकट रहकर थोड़े ही दिनोंमें समस्त विद्या तथा कलाओंमें पारदर्शिता प्राप्त कर ली। एकदिन राजा समुद्र विजय अपनी राज-सभा बैठे हुए थे। उस समय वसुदेव और कंस आदि भी वहींपर उपस्थित थे। इतने ही में वहाँ नारदमुनि आ पहुंचे। उनको देखकर राजा तथा समस्त सभा खड़ी हो गयी। राजाने उनको ऊँचे आसन पर बैठा कर पूजनादि द्वारा उनका बड़ाही सत्कार किया। इससे नारदमुनि बहुतही प्रसन्न हुए और राजाको आशीर्वाद दे वहाँसे अन्यत्र प्रस्थान कर गये। नारदमुनिका यह आदर सत्कार देखकर कंसको.
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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