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________________ आठवाँ परिच्छेद देखकर दमयन्ती रथसे उतर पड़ी और पैरोंसे चलती हुई पिताकी ओर अग्रसर हुई। उनके समीप पहुंचते ही वह आनन्दपूर्वक विकसित नेत्रोंसे उनके चरणों पर गिर पड़ी। पिता और पुत्रीका यह मिलन वास्तवमें परम दर्शनीय था। दोनोंके होठों पर मुस्कुराहट और नेत्रोंमें अश्रु थे। राजा भीमरथका वात्सल्य भाव देखते ही बनता था। वे वारंवार दमयन्ती की पीठ पर हाथ फेरकर उसे स्नेह और करुणाभरी दृष्टिसे देखते थे। उनका आनन्द आज उनके हृदयमें न समाता था। पुत्रीके आगमनका समाचार सुनकर रानी पुष्पवती भी वहाँ आ पहुंचीं। उनका समूचा शरीर स्नेहके कारण रोमाञ्चित हो रहा था। जिस प्रकार गंगा यमुनाका संगम होता है, उसी प्रकार माताने पुत्रीको गलेसे लगा लिया। स्नेहमयी माताके गले लगने पर दमयन्तीका दुःख-सागर मानो उमड़ पड़ा और उसे रुलाई आ गयी। जब उसने जी भरकर रो लिया, तब उसका हृदय भार कुछ हलका हुआ। . इसके बाद दमयन्तीके माता-पिता बड़े प्रेमसे उसे
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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