SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ नेमिनाथ चरित्र किया जा सकता। खैर, होनहार होकर ही रहता है। तुम्हारे भाग्य में यह दुःख बदा था, इसीलिये तुम्हें भोग करना पड़ा !" इस प्रकार नाना प्रकारकी बातें कहकर चन्द्रयशाने दमयन्तीको सान्त्वना दी। इतने ही में उसे स्मरण आ गया कि दमयन्तीके ललाट पर तो सूर्य के समान परम तेजस्वी एक तिलक था, वह क्यों नहीं दिखायी देता ? उसने दमयन्तीके ललाटकी ओर देखा । दमयन्ती जान बूझ कर उसकी सफाई न करती थी इसलिये वह मैला कुचेला हो रहा था। रानी चन्द्रयशाने हाथमें जल लेकर उसे भली भांति धो दिया । धोते ही वह तिलक इस प्रकार चमक उठा, जिस प्रकार बादल छँट जाने पर वर्षाके दिनों में सूर्य चमक उठता है। - इसके बाद रानी चन्द्रयशा बड़े आदर के साथ उसे दानशाला से अपने राजमहलमें लिवा लायी । वहाँ उसने स्वयं अपने हाथसेवा करा कर मनोहर श्वेत वस्त्र उसे पहननेको दिये । मौसीका यह प्रेम और आदर भाव देख कर दमयन्तीके होठों पर भी आज हॅसी दिखायी
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy