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________________ नेमिनाथ-चरित्र ___ दमयन्तीका अत्यन्त आग्रह देखकर राजा ऋतुपर्णने उस चोरका अपराध क्षमा कर दिया। राज-कर्मचारियों के हाथसे मुक्ति पाते ही वह चोर दमयन्तीके पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा :-"आपने आज मुझे जीवन-दान दिया है, इसलिये आजसे मैं आपको अपनीमाता मानूंगा।" . . इतना कह, दमयन्तीका आशीर्वाद ग्रहण कर उस समय तो वह चोर वहाँसे चला गया, किन्तु इसके बादसे वह रोज एकवार दमयन्तीके पास आने और उनको प्रणाम करने लगा। एकदिन दमयन्तीने उससे पूछा:"तुम कौन हो और कहाँ रहते हो? तुमने चोरीका यह पापकर्म क्यों किया था ?" . . - उसने कहा:--हे देवी! तापसपुरमें वसन्त नामक 'एक धनीमानी सार्थवाहक रहते थे। उन्हींका मैं पिङ्गल नामक नौकर था। मैं दुर्व्यसनी था, इसलिये उन्हींके यहाँ सेंध लगाकर, मैंने उनके भंडारसे थोड़ा बहुमूल्य भाल चुरा लिया। वह माल लेकर मैं वहाँसे भागा। मैं समझता था कि इस मोलको लिये किसी सुरक्षित
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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