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________________ ३५० नेमिनाथ- चरित्र इसने चन्द्रवती देवीकी रत्नपिटारी चुरा ली है, इसलिये इसे मृत्युदण्ड दिया गया है ।" मृत्युदण्डका नाम सुनते ही दमयन्तीको उस चोर पर दया आ गयी । इसलिये उसने करुणापूर्ण दृष्टिसे उस चोरकी ओर देखा । देखते ही चोरने हाथ जोड़कर कहा :- " हे देवि ! मुझ पर आपकी दृष्टि पड़ने पर भी क्या मुझे मृत्युदण्ड ही मिलेगा ? क्या आप मुझे अपना शरणागत मानकर मेरी रक्षा न करेंगी १":" चोरके यह वचन सुनकर दमयन्तीका हृदय और भी द्रवित हो उठा। उसने उसे अभयदान देकर कहा :"यदि मैं वास्तव में सती होऊँ, तो इस बन्दीके समस्त -बन्धन छिन्न-भिन्न हो जायँ ।" f इतना कह दमयन्तीने हाथमें जल लेकर उसपर तीन बार छिड़क दिया । छिड़कते ही उसके सब बन्धन टूट गये । इससे राज-कर्मचारियोंमें बड़ाही तहलका मच गया । उन्होंने तुरन्त राजा ऋतुपर्णको इसकी खबर दी । उसे इससे बहुतही आश्चर्य हुआ, क्योंकि ऐसी घटना इसके - पहले कभी भी घटित न हुई थी। वे सपरिवार दमयन्तीके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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