SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ परिच्छेद ३२३ लगे। वर्षाके दिन तो थे ही, शीघ्रही बादल घिर आये 1 और मुशलाधार वृष्टि होने लगी। उस गुफामें इतना • स्थान न था, कि सब तापसोंका उसमें समावेश हो सके । इसलिये वे सब वर्षाके कारण व्याकुल हो उठे । उन्होंने दमयन्तीसे पूछा :- " इस समय होमलोग कहाँ जायें और किस प्रकार इस जलसे अपनी रक्षा करें ?" - दमयन्तीने उनकी घबड़ाहट देखकर उन्हें सान्त्वना - दी और उनके चारों ओर एक रेखा खींचकर कहा :"यदि मैं सती, परम श्राविका और सरल चित्तवाली हो तो बाहर मूसलाधार वृष्टि होने पर भी इस रेखाके अन्दर एक भी बूँद न गिरे ।" दमयन्तीके मुखसे यह चचन निकलते ही उतने स्थानमें इसतरह जलका गिरना बन्द हो गया, मानो किसीने छाता तान दिया हो । उसका यह चमत्कार देखकर सब तापस बड़े विचार में *पड़ गये और अपने मनमें कहने लगे कि निःसन्देह यह - कोई देवी है । वर्ना मानुषीमें इतनी शक्ति कहाँ कि वह इस प्रकार पृथ्वीपर जलका गिरना रोक दे । "ऐसा सौन्दर्य भी मानुषीमें होना असम्भव ही है । अस्तु । 1
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy