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________________ छठा परिच्छेद २०७ पर कामदेव नामक एक वणिक भी रहता था। वह एक बार अपनी पशुशालामें गया । वहाँपर दण्डक नामक गोपालने एक भैंसको दिखलाते हुए उससे कहा :-- "अब तक इस भैसके पाँच बच्चोंको मैं मार चुका हूँ। यह इसका छठां बचा है। यह देखने में बहुत ही मनोहर है। यह जन्मते ही भयसे कॉपने लगा और दीनतापूर्वक मेरे पैरों पर गिर पड़ा। इससे मुझे इस पर दया आ गयी और मैंने इसे जीता छोड़ दिया। अब आप भी इसे अभयदान दीजिये। मालूम होता है कि यह कोई जातिस्मरण ज्ञान वाला जीव है।" यह सुनकर कामदेव उस महिपको श्रावस्तीमें ले गया और वहाँपर राजासे भी प्रार्थना कर उसने उसे अभयदान दिलाया। तबसे वह महिष निर्भय होकर नगरमें विचरण करने लगा। एकदिन राजकुमार मृग वजने उसका एक पैर काट डाला। राजाको यह हाल मालूम होनेपर वे सख्त नाराज हुए और उन्होंने कुमार को बहुत कुछ भला-बुरा कहा। इससे कुमारको चैराग्य सा आ गया और उसने उसीदिन दीक्षा ले ली। इसके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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