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________________ ANNAVA छठा परिच्छेद १७५ एक उपाध्याय उन्हें नियमित रूपसे वेदोंकी शिक्षा देरहे हैं।" वसुदेव कुमार कौतूहल प्रेमी तो थे ही, इसलिये ब्राह्मणके यह वचन सुनकर पहलेकी भाँति यहाँ भी उन्हें दिल्लगी सूझी। वे तुरन्त एक नालणका वेश धारण कर ब्रह्मदत्तके पास पहुंचे और उससे कहने लगे, कि मैं गौतम गोत्रीय स्कन्दिल नामक ब्राह्मण हूँ और आपके निकट वेद पढ़ने आया हूँ। ब्रह्मदत्तने इसके लिये सहर्ष अनुमति दे दी। बस, फिर क्या था, वातकी-बातमें उन्होंने उसके समस्त शिष्योंसे बाजी मार ली और अन्त में सोमश्रीको पराजितकर उससे व्याह कर लिया। वसुदेव कुमार अपनी इस ससुरालमें भी बहुत दिनों तक आनन्द करते रहे। अन्तमें एकदिन एक उद्यानमें इन्द्रशर्मा नामक ऐन्द्रजालिकसे उनकी भेट हो गयी। उसने उनको इन्द्रजालके अनेक अद्भुत चमत्कार कर दिखलाये | देखकर वसुदेवको भी वह विद्या सीखनेकी इच्छा हुई। इसलिये उन्होंने इन्द्रशर्मासे कहा :-"यदि यह विद्या मुझे भी सिखायेंगे तो बड़ी कृपा होगी।"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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