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________________ १७२ नेमिनाथ चरित्र वसुदेव यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और अपनी नव विवाहिता पत्नीके साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन बिताने लगे। एक दिन शरद ऋतुमै अनेक विद्याधर औषधियाँ लेने और विद्याकी साधना करनेके लिये हीमान पर्वतकी ओर जा रहे थे। उन्हें देखकर वसुदेवने नीलयशासे कहा :-"मैं भी विद्याधरोंकी सी कुछ 'विद्याएँ सीखना चाहता हूँ। क्या तुम इस विषयमें मुझे अपना शिष्य मानकर कुछ सिखा सकती हो?" नीलयशाने कहा :-"क्यों नहीं ? चलो, हमलोग इसी समय हीमान पर्वत पर चलें । मैं वहाँ तुम्हें बहुतसी बात बतलाऊँगी।" ___इतना कह वह वसुदेवको अपने साथ हीमान पर्वत पर ले गयी। किन्तु वहॉका रमणीय दृश्य देख कर वसुदेवका चित्त चञ्चल हो उठा। उनकी यह अवस्था देखकर नीलयशाने एक कदली-वृक्ष उत्पन्न किया और उसीकी शीतल छायामें वे दोनों क्रीड़ा करने लगे। इसी समय वहाँ एक माया-मयूर आ पहुंचा। उसका सुन्दर रूप देखकर नीलयशा उस पर मुग्ध हो गयी और उसको
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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