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________________ १६९ छठा परिच्छेद एक लताकुञ्जमें सो रहे थे, तब एक भूत उन्हें एक चिता के पास उठा ले गया। वहाँपर आँख खोलते ही वसुदेवने देखा कि एक भयंकर चिता धधक रही है और वह बुढ़िया भयानक रूप बनाये सामने खड़ी है। वह भूत वसुदेवको उसके हाथोंमें सौंपकर अन्तर्धान हो गया। इसके बाद बुढ़ियाने विलक्षण हँसी करते हुए कहा :"हे कुमार! तुमने फिर क्या विचार किया ? अव भी कुछ विगड़ा नहीं है। मैं चाहती हूँ कि तुम सहर्ष मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लो. जिससे मुझे किसी दूसरे उपाय से काम न लेना पड़े।" ____ इसी समय अपनी सखियोंके साथ वहाँ नीलयशा भी आ पहुँची। उसे देखकर बुढ़ियाने कहा :-"हे नीलयशा ! यही तेरा भावी पति वसुदेव कुमार है !" यह सुनते ही नीलयशा वसुदेवको लेकर आकाश मार्गमें चली गयी। दूसरे दिन सुबह बुढ़ियाने वसुदेवके पास पहुँच कर कहा :- "हे कुमार ! मेघप्रभ वनसे धीरा हुआ यह हीमान पर्वत है। इस पर्वत पर ज्वलनका पुत्र अंगारक,
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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