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________________ है। गृह-संसारके व्यवसाय को त्याग कर अपनी पौपधशालामें निरन्तर रहना और एक तपस्विनी साध्वी की तरह कठिन तपस्या करते रहना ही अपना मुख्य ध्येय बना दिया है। जिनके पास लाखोंको सम्पत्ति और सुख के साधन मौजूद हों, उनको त्यागकर यदि वे अपने अन्तिम समय को विशुद्ध मनसे धर्म-कार्य में लगा दें तो फिर उनके लिये कहना ही क्या है ? वह एक देवी-देवता के समान बन जाते हैं और अपनी आत्माका फल्याण कर इहलोक और परलोक साधित कर लेते हैं। जीयागंजमें कॉलेज स्थापित करनेके लिये ७,५२,०००) सात लाख यावन हजार रुपये का दान सन् १९४९ में आपने कालेज स्थापित करवाया जिसमें अपने निजी निवासस्थानका विशाल भवन था, जिसकी लागत लगमग २५००००) ढाई लाख रुपये की है, उसे कॉलेजके लिये दिया है। एवं २५००००) ढाई लाख रुपये नगद तथा १५००००) डेढ़ लाख की जमोदारी भी कॉलेजके संचालन के लिये दी है एवं अमी गत जून मास में होस्टेल छात्रावास निर्माणके लिये भी १०,२०००) एक लाख दो हजार रुपये “गवर्नमेण्ट ओफ वेस्ट बंगाल" के शिक्षा विमाग मन्त्री महोदय को प्रदान किये हैं। और अब से इस कॉलेजके संचालन का सारा भार “गवर्नमेण्ट प्रोफ वेस्ट बंगाल के जिम्मे रख दिया है।" और कॉलेजका नाम "श्रीपतसिंह कॉलेज" रखा गया है। इसके सिवा प्रसूती गृहके लिये सन् १९५० में जीयागंजके London Mission Society's Hospital में जैन महिलाओंके लिये रानी धन्नाकुमारी श्रीपतसिंह वार्डके नामसे
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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