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________________ १६२ नेमिनाथ चरित्र वह उसे अपने वासस्थानमें उठा लायी और पुत्रवत् · उसका लालन-पालन कर उसे वेदादिक पढ़ाने लगी । जिस समय सुभद्रा उस बालकको उठा रही थी, उस समय वह बालक अपने मुँहमें गिरा हुआ पीपलका एक फल खा रहा था । इसीलिये सुभद्राने उसका नाम पिप्पलाद रक्खा | पिप्पलाद जब बड़ा हुआ, तो वह परम बुद्धिमान और बड़ाही विद्वान निकला । उसकी कीर्ति सुनकर सुलसा और याज्ञवल्क्य उसे देखने आये । पिप्पलादने उनसे शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित कर दिया । पश्चात् सुभद्रा द्वारा जब उसे मालूम हुआ, कि यही मेरे असली मातापिता हैं और इन्होंने जन्मतेही मुझे त्याग दिया था, तब उसे उनपर बड़ाही क्रोध आया। उसने मातृमेध और पितृमेध आदि यज्ञोंका अनुष्ठानकर उन दोनोंको मार डाला । मैं उस जन्ममें पिप्पलादका शिष्य था और मेरा नाम वाग्बली था। मैंने भी यत्रतत्र पशुमेधादि यज्ञोंका अनुष्ठान कराया था, इसलिये मृत्युके बाद मैं घोर नरकका अधिकारी हुआ ।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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