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________________ १५६ . नैष्कर्म्यसिद्धिः लाई हुई युक्तियोंके साथ समस्त न्यायका उपसंहार करनेवाले पाँच श्लोकोसे कहा है, उसीको कहते हैं मैं नित्यमुक्त हूँ, ऐसा ज्ञान 'तत्त्वमसि' इत्यादि वाक्योंसे उत्पन्न होता है और किसी साधनके अनुष्ठानसे नहीं होता। वाक्यार्थका भी ज्ञान तत् और स्वम् पदके अर्थके स्मरणसे होता है ॥ ३१ ॥ . अन्वयव्यंतिरेकाभ्यां पदार्थः स्मर्यते ध्रुवम् । एवं निःखमात्मानमक्रियं प्रतिपद्यते ॥३२॥ तत् और त्वम् पदके अर्थका स्मरण पूर्वोक्त अन्वय और व्यतिरेकसे होता है। इस प्रकार सर्व विशेषणोंसे रहित आत्माको 'मैं ब्रह्म हूँ' इत्यादि वाक्योंसे जानता है ॥३२॥ सदेवेत्यादिवाक्येभ्यः प्रमा स्फुटतरा भवेत् । दशमस्त्वमसीत्यस्माद्यथैवं प्रत्यगात्मनि ॥ ३३ ॥ 'यह सारा नाम-रूपात्मक जगत् उत्पत्तिके पूर्व केवल ब्रह्म ही था, इत्यादि वाक्यों से अवगत ब्रह्मका जब आचार्य 'तत्त्वमसि' इत्यादि वाक्यसे-'तू वही ब्रह्म है' ऐसा बोध कराता है, तब उस पुरुषको,-जैसे भ्रान्त पुरुषको 'तू दशम है' इस वाक्यसे 'मैं दशम हूँ? ऐसी स्पष्ट प्रतीति होती है। वैसे ही;--'मैं ब्रह्म हूँ' ऐसा अपरोक्ष ज्ञान होता है ॥३३॥ वीक्षापन्नम्योदाहरणम् । नववुद्धथपहाराद्धि स्वात्मानं दशपूरणम् । अपश्यन् ज्ञातुमेवेच्छेत्स्वमात्मानं जनस्तथा ॥३४॥ अविधाबद्धचक्षुष्ट्वात् कामापहृतधीः' सदा । विविक्तं दृशिमात्मानं नेक्षते दशमं यथा ॥ ३५ ॥ जो हमने तीसरे अध्यायमें सन्दिग्ध पुरुषको 'मैं कौन हूँ' ऐसी जिज्ञासा होती है, ऐसा कहा और उसमें दृष्टान्तका प्रदर्शन करके दार्शन्तिकको दिखलाया था, वह सब प्राचार्यने भी कहा है, उसीको दिखाते हैं जैसे, गणनामें प्रवृत्त हुश्रा पुरुष 'हम लोग नौ ही हैं। इस प्रकार नव संख्या में अभिनिवेश होनेके कारण अपना दशम होना, भूलकर अपनेसे अतिरिक्त नौ आदमियोंको देखता हुश्रा भी भ्रान्ति से 'मैं दशम हूँ' ऐसा न जानता हुआ उसे जाननेकी इच्छा करता है। वैसे ही अविद्यासे जिसका स्वरूप प्रावृत्त हुआ है, ऐसा पुरुष विषयोंमें आसक्तिरूप १-कामापहतधी:, ऐसा पाठ भी है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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