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________________ १३४ 0 नैष्कर्म्यसिद्धिः कस्मात्पुनः कारणात्साक्षादेवात्मा नाभिधीयते किमनया कल्पनयेति तत्राह - त्वमित्येतद् विहायाऽन्यन्न वर्त्माऽऽत्मावबोधने । समस्तीह त्वमर्थोऽपि गुणलेशेन वर्तते ॥ ९८ ॥ इसपर यदि कोई शङ्का करे कि मुख्यवृत्तिसे आत्मा को बतलानेवाला कोई शब्द है या नहीं ? यदि नहीं है, तब आत्मा लक्ष्य भी कैसे होंगा ! क्योंकि जो वाच्य होता है वही लक्ष्य भी होता है । अगर मुख्य वृत्तिसे बतलाने वाला शब्द हैं, तब उसीसे आत्माका कथन कीजिए, इस लक्षण की कल्पनासे क्या प्रयोजन है ? इसका उत्तर देने के लिए कहते हैं- 'तू' 'मैं' इत्यादि शब्दों को छोड़कर श्रात्माको समझानेके लिए और कोई पद हैं नहीं । वे पद भी गुणवृत्ति या लक्षणावृत्तिसे ही श्रात्माके बोधक है, न कि मुख्यवृत्तिसे । तव मुख्यवृत्तिसे बोधन करनेवाला कोई पद है नहीं। तो भी, वह किसी पदका लक्ष्य नहीं है, इससे कोई दोष नहीं होता। क्योंकि वाच्यत्व लक्ष्यस्वका प्रयोजक नहीं है । मुख्यार्थ के साथ सम्बन्ध होने ही से वह लक्ष्य हो जाएगा, ऐसा कहीं देखने में नहीं आया कि मुख्यार्थ सम्बन्ध तो है, परन्तु वाच्यत्व नहीं है, इसलिए वह लक्ष्य नहीं हुआ। शुद्ध श्रात्मामें जाति, गुण, क्रियादिके न रहने से और श्रुतिने वाच्यत्वका निषेध भी किया है इसलिए उसमें, वाच्यत्व नहीं है। तो भी वाच्यार्थ जो प्रमाता है, उसके साथ सन्बन्ध है । इसलिए 'लम्' ' अहम्' इत्यादि शब्दोंसे, गुण सम्बन्धद्वारा आत्मा लक्षित होता है ॥ ६८ ॥ कस्मात्पुनर्हेतोर्बहमित्येतदपि गुणलेशेन वर्तते न पुनः साक्षादेवेति । विधूत सर्व कल्पनाकारणस्वाभाव्यादात्मनः । अत आह— व्योम्नि धूमतुषाराभ्रमलिनानीव दुर्धियः । कल्पयेयुस्तथा मूढाः संसारं प्रत्यगात्मनि ।। ९९ । • यदि कोई कहे कि 'तू' 'मैं' इत्यादि शब्द यदि प्रत्यगात्मा के बोधक हैं, तब क्या कारण है कि इन शब्दों से श्रात्माका साक्षात् बोध नहीं होता, किन्तु गुणवृचसे होता है ? तो इसका उत्तर यह है कि वाच्य, वाचक इत्यादि कल्पनाका कारण गुण, क्रिया किंवा जाति, कोई भी प्रास्मा में वास्तवमें नहीं है। इसी कारण साक्षात् किसी शब्द से उसका प्रतिपादन न होकर लक्षणा दिसे मानना पड़ता है । इसी बात को पुष्टि करने के लिए कहते हैं-
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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