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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः इदं ज्ञानं भवेज्ज्ञातुर्ममज्ञानं तथाऽहमः । अज्ञानोपाधिनेदं स्याद्विक्रियाऽतोऽहमो मम ॥ ६० ॥ ज्ञाता साक्षीको इस प्रकारका ज्ञान साक्षात् अपनेसे भास्य अहंवृत्तिविशिष्ट अन्तःकरणमें होता है । वही साक्षी अहङ्कारके साथ एकताको अध्याससे जब प्राप्त होता है, तब घटादिमें 'यह मेरा है' इस प्रकारका ज्ञान उपकार्यापकारकभावरूप सम्बन्धसे होता है । अज्ञानोपाधिक चैतन्याभ्याससे इदं इत्याकारक ज्ञान होता है, उसके बाद बाह्यउपकारादि सम्बन्धसे अहंपदार्थको 'मम' इस प्रकारका विकार होता है ॥ ६०॥ - एकस्यैव ज्ञातुरन्तर्बाह्यनिमित्तभेदाद्विभिन्नेऽपि विषय इदं ममेति ज्ञानं द्वैरूप्यं जायत इत्युक्तम् । अत्रोपक्रियमाणापक्रियमाणस्यैव ज्ञातुर्विषये मम प्रत्ययो भवति, विपर्यये चेदंप्रत्यय इति कथमवगम्यते ? अवगम्यतामन्वयव्यतिरेकाभ्याम् । तत्कथमित्याह अनुपक्रियमाणत्वान्न ज्ञातुः स्यादहं मम । घटादिवदिदं तु स्यान्मोहमात्रव्यपाश्रयात् ॥ ६१ ।। अन्तर्निमित्त चैतन्याभास, बाह्यनिमित्त उपकारादि विषयज्ञान परिणामके भेदसे भिन्न-भिन्न विषय अन्तःकरण और घटादिमें 'इदम्' और 'मम' ऐसा ज्ञानद्वय होता है, ऐसा कहा गया। इसपर यह शङ्का होती है कि-"अहंकारोपाधिक ज्ञाताको घटादिविषयमें स्वामिभाव रूप सम्बन्धसे 'मम' ऐसा ज्ञान होता है और अज्ञानमात्रोपाधिकका अन्तःकरण में 'इदम्' ऐसा ज्ञान होता है, यह कैसे जाना जाता है ?" इसका समाधान यह है कि-अन्वय व्यतिरेकसे ! वह कैसे, सो बतलाते हैं ज्ञाता साक्षी अहङ्कारसे उपकृत या अपकृत नहीं होता, इसलिए अहंकार घटादि. के सदृश 'मम' ऐसे ज्ञानका विषय नहीं होता। मोहमात्र ही अालम्बन जिस चिदा भास का है, उसके सम्बन्धसे 'इदं' इस रूपसे अवमास्य होता है। उपकारकत्वादि शून्य अहंकारमें साक्षीका 'इदं' इत्याकारक प्रत्यय देख पड़ता है, इसलिए एतादृश घटादिमें 'इदम्' इत्याकारक ज्ञान ही होगा। उपकारकत्वादि धर्म युक्तमें 'मम' ऐसा ज्ञान होगा, यह देखना चाहिए ॥ ६१ ॥ मोहतत्कार्याश्रयत्वाज्ज्ञातृत्वविक्रिययोः पूर्वत्रेदंममज्ञानान्वयः प्रदर्शितः । अथाऽधुना तद्वयतिरेकेण व्यतिरेकप्रदर्शनार्थमाह १ अज्ञानोपाधिनैवं स्यात्, भो पाठ है। २ भेदाभिन्ने, भो पाठं है। ३ ज्ञानरूप्यम्, भी पाठ है। .
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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