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________________ पश्चात् जब दुर्ग की खुदाई हुई तो उसमे भगवान पाश्वनाथ की पाषाण की भव्य मूर्ति प्राप्त हुई, जिसके दर्शन मात्र से ही आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। इस मूर्ति का आकार 81x5 इंच है तथा उसका फण टूटा हुआ है। इस पर सवत् 1548 वरसे वैशाख सुदी 3 अकित है। इस मूर्ति के सवत् के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 16वी शताब्दी मे मुलतान मे दिगम्बर जैन समाज का अस्तित्व था। मुलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर मे नीचे एक वेदी थी जिसमे अनुमानतया 60 मूतिया विराजमान थी। भगवान पारसनाथ की प्रतिमा जिसमे मूलनायक थी। __ ऊपर एक कमरे मे सिंहासननुमा वेदी मे भगवान चन्द्रप्रभु की एक सफेद पाषाण की मनोज्ञ मूर्ति विराजमान थी, जो अतिशय युक्त एव चमत्कारिक मानी जाती है। इसके विषय मे ऐसी किवदन्ती है कि रात को कई बार मूर्ति के सामने घन्टे बजते एव जयजयकार के शब्द सुनाई देते थे। यह अतिशय देव कृत कहा जाता है तथा उसी कमरे की दीवार मे एक छोटी सी वेदी बनी हुई थी जिसमे तीन स्फटिक मणि की एव कई छोटी-छोटी सर्वधातु एव पाषाण की प्रतिमाए विराजमान थी। भगवान पार्श्वनाथ की सबसे अधिक मान्यता थी। इसलिये मतिया भी मन्दिर मे सबसे अधिक भ० पार्श्वनाथ की थी। मन्दिर मे सबसे प्राचीन मूर्ति भगवान पाश्वनाथ की सवत् 1481 की थी जो धातु की पद्मासन है और 2-3 इच साइज की है । उस पर निम्न प्रकार लेख है "सवत् 1481 काष्ठा सा० चम्पा सा० लूनि ।" इसी मन्दिर मे एक खड्गासन प्रतिमा है जो धातु की है तथा सवत् 1502 बैसाख सुदी 3 शनिवार के दिन की प्रतिष्ठित है। भट्टारक जिनचन्द्र इसके प्रतिष्ठाकारक थे तथा सा० डाल गोधा ने अपने पत्नी एव परिवार के साथ इसकी प्रतिष्ठा करवायी थी। मूर्ति का लेख निम्न प्रकार है "सवत् 1502 वर्षे वैशाख सदी 3 शनी श्री मलाघे भ० श्री जिनचन्द्रदेवा खण्डेलवाल गोधा सा डालू भा धनपति डोडा सा ल्हालो माला करायिता ।" चौवीस महाराज की एक प्रतिमा सवत् 1638 माघ शुक्ला पचमी सोमवार के दिन की प्रतिष्ठित है। प्रतिमा पद्मासन है तथा 5x3 इच की है। किसी अग्रवाल जैन बन्यु ने इसकी प्रतिष्ठा करवा कर मन्दिर मे विराजमान की थी। इसी तरह मन्दिर मे सवत् 1561 की भी पार्श्वनाथ की ही मूर्ति है मवत् 1565 मे प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर वडा लेख है जिसके अनुनार भट्टारक मलय कीति के भ्राता भ० शान्तिदास के उपदेश से प्रस्तुत प्रतिमा प्रतिष्टित की गयी थी। 5 ] मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास ले पालोप में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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