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________________ पण्डितजी अपने समय के ज्योतिमान दीपको में से थे तथा निर्भीक सम्पादक, कुशल साहित्यिक एव जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ थे। श्री शास्त्रीजी ऐसे दीपक थे जिन्होने विवादो मे भयकर तूफानो के बीच भी अपनी ज्योति ज्यो की त्यो रखी । पण्डितजी पर मुलतान समाज को ही नही अपितु समस्त जैन समाज को सदा गर्व रहेगा । आप अपने पीछे अपनी पत्नी श्रीमती चमेलाबाई, एक पुत्र एव चार पुत्रिया छोड गये हैं । 0000 सम्वत् 1901 से 2004 तक की अन्य प्रमुख सामाजिक गतिविधियाँ विक्रम संवत् 1901 से सवत् 2000 तक सौ वर्ष का समय दीपक की लौ के समान रहा जो बुझने से पूर्व अधिक प्रकाश करता है । इसी तरह मुलतान दिगम्बर जैन समाज इन वर्षों के समय में, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से चरम उत्कर्ष पर था । वहा समय-समय पर आध्यात्मिक चर्चाओ के अतिरिक्त विशाल उत्सव भी मनाये जाते रहे, जिनमे सवत् 1965 का जलसा विशेष उल्लेखनीय रहा है । उस वर्ण एक बहुत बडे उत्सव का आयोजन किया गया था जिसमे बाहर से कई भजन मंडलिया, नाटककार, सगीतज्ञ आदि तथा विद्वद्वर्य श्री प० पन्नालालजी न्यायदिवाकर खरजा एव श्री प० कल्याणमलजी अलीगढ़ वाले आदि दिग्गज विद्वान बलाए गये । इसी अवसर पर इस महान उत्सव मे, एक विशाल पैमाने पर अपूर्व शोभा यात्रा अर्थात् जुलूस बडी सजधज के साथ निकाला गया था, जिसकी स्मृतिया आज भी सजीव है । रात्रि मे भजन मण्डलियो द्वारा हृदयग्राही उपदेशात्मक एवं आध्यात्मिक भजन, एव नाट्यकारो द्वारा नाटको के माध्यम से धार्मिक एव सास्कृतिक प्रदर्शन तथा बाहर से पधारे हुए गणमान्य विद्वानो के उद्बोधात्मक प्रभावी प्रवचनो द्वारा महती धर्म प्रभावना हुई, जिसकी स्मृतिया आज भी लोगो के हृदय पटल पर अकित है । इसी प्रकार प्रत्येक वर्ष पर्वाधिराज दशलक्षण पर्व भी अत्यन्त उत्साह पूर्वक एव धूमधाम से मनाया जाता था । प्रात 7 से 11 बजे तक सामूहिक पूजन, तत्पश्चात् बाहर से बुलाये गये विद्वानो द्वारा एक बजे तक शास्त्र प्रवचन, सायकाल भजन मण्डलियो द्वारा आरती एव भक्तिपूर्ण भजन, रात्रि मे विद्वानो द्वारा सार्वजनिक रूप से सैद्धान्तिक एव तलस्पर्शी आध्यात्मिक प्रवचनों से धर्म प्रभावना की जाती थी तथा दशलक्षण पर्व के अन्त मे नगर मे विशाल स्तर पर शोभायात्रा से महती धर्म प्रभावना सहित दगलक्षणी पर्व का क्षमावाणी एव समापन समारोह मनाया जाता था । मुलतान मे समय-समय पर बराबर विद्वानों का भी आगमन होता रहता था जिनमे सर्वश्री विद्वद्वर्य प० पन्नालालजी न्यायदिवाकर, प० श्री कल्याणमलजी अलीगड, प० श्री पन्नालालजी धर्मालकार गिखरजी, पं० श्री कस्तूरचन्दजी, प०श्री मक्खनलालजी मुरेना, प० श्री मक्खनलालजी दिल्ली, प० श्री कैलाशचन्दजो वाराणसी, प० श्री राजेन्द्रकुमारजी मथुरासध, प० श्री लालबहादुर शास्त्री, सगीतज्ञ भैयालालजी भजनसागर व प० नाचन्दजी गोरावाला आदि विद्वानो के नाम विशेषत उल्लेखनीय है । • मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के प्रालोक ने [ 51
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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