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________________ दौलतराम ओसवाल दौलतराम नाम के कितने ही कवि हये हैं इनमें जयपुर के दौलतराम कासलीवाल एव अलीगढ के दौलतराम सर्वाधिक लोकप्रिय विद्वान हैं । दौलतगम कासलीवाल का समय संवत् 1749 से 1829 का माना गया है। दूसरे दौलत राम का समय सवत 1855 से 1923 का है। लेकिन अभी मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार को देखते समय एक नये दौलतराम की कृति मिली हैं जो मुलतान के ही निवासी थे। मुलतान नगर में स्वाध्याय प्रेमियों, ग्रन्थ लिपिकारों तथा जैन साधुओं के अतिरिक्त संवत 1800 अथवा इसके पूर्व "दौलतराम” नामक कवि हुये जिनको सस्कृत ग्रन्थो की भाषा टीका करने मे रुचि थी। उनका जन्म कब हुआ तथा उनके माता पिता आदि कौन थे इस सम्बन्ध में अभी खोज नहीं हो सकी है लेकिन इतना अवश्य है कि वे मुलतानवासी थे, ओसवाल जाति के दिगम्बर जैन श्रावक थे तथा विद्वान थे। सवत् 1828 मे जव उनका इन्दौर नगर जाना हुआ तो वहां पर मल्लिनाथ चरित्र की भाषा टीका लिखी । यह ग्रन्थ अभी तक अज्ञात था तथा इसके सम्बन्ध मे हमे प्रथम वार जानकारी प्राप्त हुई है। मल्लिनाथ चरित्र भट्टारक सकलकीति द्वारा रचित सस्कृत का काव्य ग्रन्थ है जिसकी इन्होंने हिन्दी गद्य मे टीका लिखी थो । इसकी एक प्रति मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर जयपुर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है जो सवत् 1955 भादवा सुदी 14 की लिखी हुई है । ____ जयपुर में होने वाले महाकवि दौलतराम कासलीवाल का भी यही समय है । उनकी अन्तिम रचना पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका है जिसको महा पडित टोडरमल जी अपूर्ण ही छोड़ गये थे और जिसका रचना काल सवत् 1827 है। इसके अतिरिक्त दौलतराम कासलीवाल एव दौलतराम ओसवाल की भाषा मे भी काफी अन्तर है इसलिए दौलतराम ओसवाल भिन्न कवि हैं । मल्लिनाथ चरित्र भाषा टीका के अन्त मे उन्होने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है सवत अठारेसत अठवीस भौम दिन तिथ निरवाण महावीर निरग्रन्थ है। जिनको इन्दौर मे निमिति बुद्धि दौलत की बुद्धि को विलास भयो मल्लिनाथ ग्रन्थ है ।। देववानी अर्थ प्रमाणी भाषा ठानी जामे ता करि के खुले भव्य मेधा मधि ग्रन्थ है ।। तदपि सकल कवि कोविद किया के मेरी मदता को हरो कछू लगत न ग्रन्थ हैं । इति श्री सकल कीर्ति आचारज विरचित सस्कृति श्री मल्लिनाथ चरित्र अनुसार समाप्तं । इह टीका भाषा वचनिका दौलतराम उसवाल मुलतानी कही है श्री मिती भादो सुदी 14 संवत् 1955 शाके 1820 शुभ । मल्लिनाथ चरित्र की भापा यद्यपि ढढारी है किन्तु उस पर मुलतानी प्रभाव है उसका एक उदाहरण इस प्रकार है 361 . मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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