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________________ मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में विश्व के प्राचीनतम धर्मो मे जैन धर्म का विशेष स्थान है | इतिहासातीत काल से इस धर्म ने विश्व की सभी संस्कृतियों को प्रभावित किया है और अपने उदार सिद्धान्तो एव परम्पराओ के आधार पर उनके विकास में योगदान दिया है। इसी अवसर्पिणी काल मे इस धर्म मे 24 तीर्थकर 12 चक्रवर्ती सम्राट्, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 9 बलभद्र एवं हजारो पुण्य-पुरुष हुए हैं जिन्होने देशवासियो को जीने की कला सिखायी, बुराईयो, गलत परम्पराओ एव अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाया तथा जाति-भेद एवं वर्ग-भेद समाप्त कर प्राणी मात्र से प्रेम करने का मार्ग बतलाया । इन्ही कारणो से जैन धर्म देश के सभी भागो मे समान रूप से "जन-धर्म" के रूप मे लोकप्रिय बना रहा । इसके प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने देशवासियो को विज्ञान युग मे प्रवेश करना सिखलाया तथा असि मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या एव गिल्प का ज्ञान देकर उन्हे स्वावलम्बी बनना सिखाया । यही नही भगवान ऋषभदेव का सम्पूर्ण जीवन ही भारतीय भावनाओ का जनक बन गया । यही कारण है कि वे प्रथम तीर्थकर के रूप मे ही पूज्य नही, अपितु वैदिक मन्त्रों मे तथा पुराण एव भागवत मे आठवें अवतार के रूप मे भी मान्यता प्राप्त है । ऋषभदेव के पश्चात इस देश मे 23 तीर्थंकर और हुए, जिनमे तीर्थकर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की ऐतिहासिकता मे किसी को सन्देह नही है | भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण महावीर के 250 वर्ष पूर्व हुआ था । पार्श्वनाथ के समय अन्धविश्वासो का जोर था । पचाग्नि तप तथा कमठ का उपसर्ग इस बात का द्योतक है। भगवान पार्श्वनाथ ने इनका घोर विरोध किया और आध्यात्म का प्रचार किया । भगवान महावीर के युग मे हिंसा का ताण्डव नृत्य हो रहा था । उमके विरुद्ध उन्होने आवाज उठायी और अहिंसा धर्म की श्रेष्ठता की स्थापना की । साथ ही सह-अस्तित्व का पाठ पढाकर सब धर्मो से प्र ेम करना सिखलाया तथा अपरिग्रहवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर वर्ग भेद की लडाई को कम करने का प्रयास किया । उन्होने सृष्टि कर्तृत्ववाद समाप्त कर पुरुषार्थ का पाठ पढाया और प्रत्येक प्राणी के लिए परमात्मा वन सकने की घोषणा की। इस प्रकार तीर्थंकरो द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म इस देश मे हजारो वर्षों से गंगा और यमुना की तरह देश की सस्कृति मे घुला हुआ है और अपने पावन सदेगो से यहा के निवासियों के जीवन को समुज्ज्वल बनाने की दिशा मे अग्रसर है । भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् भगवान महावीर के परिनिर्वाण के समय से जैन धर्म उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर फैल गया । उत्तर मे पंजाब एव सीमा- प्रान्त तक इस धर्म के मुनि, उपाध्याय मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे [ 1
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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