SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 इसके लिए दिल्ली मे श्री गुमानीचन्द जी से बात हुई थी जिसे उन्होंने बहुत पसन्द किया तथा मेरे साथ चलकर कुछ लोगो से आर्थिक सहयोग देने का वचन भी ले दिया । सुनते ही मुझे अन्दर से कुछ ऐसी खुशी की अनुभूति हुई कि जिस कार्य को मैं अव असम्भव मान बैठा था उसके होने की कुछ किरण दिखाई देती है, सराहना की और साथ देने का निर्णय लिया इस काम को पूरा करने का । इतिहास का प्रारूप तैयार करने के लिए डा० श्री वस्तूरचन्द जी कासलीवाल के पास गये उन्होने कार्य को करने की महर्ष स्वीकृति दी - कार्य प्रारम्भ हुआ । पूजा पाठ सग्रह की पुस्तक समाज के सामने आ चुकी है । इतिहास आपके सामने है । श्री कासलीवाल जी ने तीन महीने तक जयकुमार जी को साथ बिठाकर मुलतान से आये लिखित शास्त्रभण्डार तथा वहाँ से आई मूर्तियो के लेखो मे जो सामग्री प्राप्त की है उस आधार पर कठिन परिश्रम से यह इतिहास का ग्रन्थ तैयार किया गया है । यह हमारी समाज के लिए एक अद्वितीय कार्य हुआ है । इसका लाभ सैकड़ो वर्षो तक समाज को मिलता रहेगा । मैं डा० श्री कस्तूरचन्द जी कासलीवाल का बहुत-बहुत आभारी हूँ तथा उन्हे कोटिश धन्यवाद देता हूँ एव इसमे अन्य उन सभी महानुभावो को जिन्होने दिल्ली जयपुर मे अर्थ सग्रह एवं मामग्री एकत्रित करने मे सहयोग दिया, उन सबका भी मे बहुत-बहुत आभारी हूँ । न्यायतराम अध्यक्ष मुलतान दि० जैन समाज
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy