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________________ परिशिष्ट-१ इस मोक्षशास्त्रके आधारसे श्री अमृतचन्द्र सूरिने "श्री तत्त्वार्थसार शास्त्र बनाया है। उसके उपसंहारमें इस ग्रंथका सारांश २३ गाथाओं द्वारा दिया है वह इस शास्त्रमे भी लागू होता है अतः यहाँ दिया जाता है: ग्रन्थका सारांश प्रमाणनयनिक्षेप निर्देशादि सदादिभिः । सप्ततत्त्वमिति ज्ञात्वा मोक्षमार्ग समाश्रयेत् ॥११॥ अर्थ-जिन सात तत्त्वोंका स्वरूप क्रमसे कहा गया है उसे प्रमाण, नय, निक्षेप, निर्देशादि तथा सत् आदि अनुयोगों द्वारा जानकर मोक्षमार्ग का यथार्थरूपसे आश्रय करना चाहिये। प्रश्न-इस शास्त्रके पहले सूत्रका अर्थ निश्चयनय, व्यवहारनय, और प्रमाण द्वारा क्या होगा? उत्तर-जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता है सो मोक्षमार्ग हैइस कथनमें अभेद स्वरूप निश्चयनयकी विवक्षा है अतः यह निश्वयनयका कथन जानना; मोक्षमार्गको सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रके भेदसे कहना, इसमें भेदस्वरूप व्यवहारनयकी विवक्षा है अतः यह व्यवहारनयका कथन जानना; और इन दोनोका यथार्थ ज्ञान करना सो प्रमाण है। मोक्षमार्ग पर्याय है इसीलिये प्रात्माके त्रिकाली चैतन्यस्वभावको अपेक्षासे यह सद्भुत व्यवहार है। प्रश्न-निश्वयनयका क्या अर्थ है ? उत्तर-'सत्यार्थ इसी प्रकार है' ऐसा जानना सो निश्चयनय है । प्रश्न-व्यवहारनयका क्या अर्थ है ? उत्तर-ऐसा जानना कि 'सत्यार्थ इस प्रकार नहीं है किन्तु
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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