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________________ अध्याय १० सूत्र ९ व उपसंहार ७६७ (७) प्रत्येक बुद्ध पोधित-प्रत्येक बुद्ध सिद्ध होनेवाले जीव अल्प हैं उससे संख्यातगुने जीव बोधितबुद्ध होते है। (८) ज्ञान-मति, श्रुत इन दो ज्ञानसे केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध होनेवाले जीव अल्प है, उनसे संख्यात गुने चार ज्ञानसे केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध होते है और उनसे संख्यातगुने तीन ज्ञानसे केवलज्ञान उत्पन्न कर सिद्ध होते है। (९) अवगाहना-जघन्य अवगाहनासे सिद्ध होनेवाले जीव थोड़े है, उनसे संख्यातगुने उत्कृष्ट अवगाहनासे और उनसे संख्यातगुने मध्यम अवगाहनासे सिद्ध होते है। (१०) अन्तर-छहमासके अन्तरवाले सिद्ध सबसे थोड़े हैं और उनसे सख्यातगुने एक समयके अन्तरवाले सिद्ध होते है। (११) संख्या-उत्कृष्टरूपमें एक समयमे एकसौ आठ जीव सिद्ध होते हैं, उनसे अनन्तगुने एक समयमे १०७ से लगाकर ५० तक सिद्ध होते हैं, उनसे प्रसंख्यात गुने जीव एक समयमें ४६ से २५ तक सिद्ध होनेवाले है और उनसे सख्यातगुने एक समयमें २४ से लेकर १ तक सिद्ध होनेवाले जीव हैं। इसतरह बाह्य निमित्तोंकी अपेक्षासे सिद्धोंमें भेदकी कल्पना की जाती है। वास्तवमें अवगाहना गुणके अतिरिक्त अन्य आत्मीय गुणोंकी अपेक्षासे उनमे कोई भेद नहीं है। यहाँ यह न समझना कि 'एक सिद्धी दूसरा सिद्ध मिल जाता है-इसलिये भेद नहीं है।' सिद्धदशामे भी प्रत्येक जीव अलग अलग ही रहते है, कोई जीव एक दूसरेमें मिल नही जाते | - उपसंहार १-मोलतत्त्वकी मान्यता सम्बन्धी होनेवाली भूल और उसका निराकरण कितने ही जीव ऐसा मानते हैं कि स्वर्गके सुखको अपेक्षासे अनन्तगुना सुख मोक्षमे है । किन्तु यह मान्यता मिथ्या है, क्योकि इस गुणाकारमें
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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