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________________ ७६४ मोक्षशासा अर्थ-[ क्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थ चारित्र प्रत्येकबुद्धबोधित ज्ञानावगाहनांतर संख्याल्प बहुत्वतः साध्याः1 क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येक बुद्ध बोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगोंसे [ साध्याः ] मुक्त जीवों ( सिद्धों) में भी भेद सिद्ध किये जा सकते हैं । टीका १-क्षेत्र-ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षासे (वर्तमानकी अपेक्षासे) प्रात्मप्रदेशोंमें सिद्ध होता है, आकाशप्रदेशोंमें सिद्ध होता है, सिद्धक्षेत्रमें सिद्ध होता है । भूत नैगमनयकी अपेक्षासे पन्द्रह कर्म भूमियोंमें उत्पन्न हुए पुरुष ही सिद्ध होते हैं। पन्द्रह कर्मभूमियोमें उत्पन्न हुये पुरुषका यदि कोई देवादि अन्य क्षेत्रमें उठाकर ले जाय तो अढ़ाई द्वीप प्रमाण समस्त मनुष्य क्षेत्रसे सिद्ध होता है। २-काल-ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षासे एक समयमें सिद्ध होता है। भूत नैगमनयको अपेक्षासे उत्सपिणी तथा अवपिणी दोनों कालमें सिद्ध होता है; उसमें अवसर्पिणी कालके तीसरे कालके अन्त भागमें, चौथे कालमें और पांचवें कालके प्रारम्भमें ( जिसने चौथे कालमें जन्म लिया है ऐसा जीव ) सिद्ध होता है। उत्सपिणी कालके 'दुषमसुषम' कालमें चौवीस तीर्थंकर होते हैं और उस कालमें जीव सिद्ध होते हैं ( त्रिलोक प्रज्ञप्ति पृष्ठ ३५०); विदेहक्षेत्रमें उत्सपिणी और अवसर्पिणी ऐसे कालके मेद नहीं है। पंचमकालमे जन्मे हुये जीव सम्यग्दर्शनादि धर्म प्राप्त करते है किन्तु वे उसी भवसे मोक्ष प्राप्त नहीं करते। विदेहक्षेत्रमें उत्पन्न हुये जीव अढ़ाई द्वीपके किसी भी भागमें सर्वकालमें मोक्ष प्राप्त करते हैं। ३-गति-ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षासे सिद्धगतिसे मोक्ष प्राप्त होती है; भूत नैगमनयकी अपेक्षासे मनुष्यगतिमें ही मोक्ष प्राप्त होती है। ४-लिंग-ऋजुसूत्रनयसे लिग ( वेद ) रहित ही मोक्ष पाता है; भूतनैगमनयसे तीनों प्रकारके भाववेदमें क्षपक श्रेणी मांडकर मोक्ष प्राप्त
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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