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________________ मोक्षशास्त्र ७५० दशा प्राप्त नहीं कर सकता; तो फिर ऋतु इत्यादिकी विषमतासे शरीरको रक्षाके लिये वस्त्र रखे तो ऐसे रागवाला सम्यग्दृष्टि हो तो भी मुनिपद प्राप्त नही कर सकता और सर्वथा अकषाय दशाकी प्राप्ति तो वे कर ही नही सकते, यही देखा भी जाता है। १४~-गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीपहजय और चारित्रके स्वरूपके सम्बन्धमें होनेवाली भूल और उसका निराकरण उन उन विपयोंसे सम्बन्धित सूत्रोकी टीकामें दिया है, वहाँसे समझ लेना । कुछ लोग आहार न लेनेको तप मानते है किन्तु यह मान्यता यथार्थ नहीं। तपकी इस व्याख्यामे होनेवाली भूल दूर करनेके लिये सम्यक् तपका स्वरूप १६ वें सूत्रकी भूमिकामें तथा टीका फिकरा ५ में दिया है, उसे समझना चाहिये । १५-मुमुक्षु जीवोंको मोक्षमार्ग प्रगट करनेके लिये उपरोक्त वारेमें यथार्थ विचार करके संवर-निर्जरा तत्त्वका स्वरूप वरावर समझना चाहिये । जो जीव अन्य पांच तत्त्वों सहित इस संवर तथा निजरातत्त्वकी श्रद्धा करता है, जानता है उस अपने चैतन्यस्वरूप स्वभाव भावकी ओर झुक कर सम्यग्दर्शन प्रगट करता है तथा संसार चक्रको तोडकर अल्पकालमे - वीतराग चारित्रको प्रगट कर निरिण-मोक्षको प्राप्त करता है। १६-इस अध्यायमें सम्यक्चारित्रका स्वरूप कहते हुए उसके अनुसधानमें धर्मध्यान और शुक्लध्यानका स्वरूप भी बतलाया है । ( देखो सूत्र ३६ से ३६ ) चारित्रके विभागमें यथाख्यात चारित्र भी समाविष्ट हो जाता है, चौदहवे गुणस्थानके अन्तिम समयमें परम यथाख्यात चारित्र प्रगट होने पर सर्वगुणोके चारित्रकी पूर्णता होती है और उसी समय जीव निर्वाणदशा प्राप्त करता है-मोक्ष प्राप्त करता है । ४७ वें सूत्र में संयमलब्धिस्थानका कथन करते हुये उसमे निर्वाण पद प्राप्त होने तककी दशाका वर्णन किया गया है । इसतरह इस अध्यायमें सब तरहकी 'जिन' दशाका स्वरूप आचार्य भगवानने बहुत थोडे सूत्रों द्वारा बताया है। इसप्रकार श्री उमास्वामी विरचित मोक्षशास्त्रकी गुजराती टीकाके नवमें अध्यायका हिन्दी अनुवाद पूर्ण हुआ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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