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________________ ७४४ मोक्षशास्त्र कारण किसी समय आर्तध्यान भी हो जाता है और इसीलिये उनके कृष्णादि अशुभ लेश्या भी हो सकती हैं । कषायकुशील मुनिके कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल ये चार लेश्यायें होती हैं । सूक्ष्म सांपराय गुणस्थानवर्तीके तथा निग्रंथके शुक्ल लेश्या होती है । स्नातकके उपचारसे शुक्ल लेश्या है, अयोग केवलोके लेश्या नहीं होती । (७) उपपाद - पुलाक मुनिका - उत्कृष्ट अठारह सागरकी आयुके - साथ-बारहवें सहस्रार स्वर्गमें जन्म होता है । वकुश और प्रतिसेवना कुशीलका - उत्कृष्ट जन्म बाईस सागरको आयुके साथ पन्द्रहवें आरण और सोलहवें अच्युत स्वर्ग में जन्म होता है । कषायकुशील और निग्रंथकाउत्कृष्ट जन्म तेतीस सागरकी आयुके साथ सर्वार्थसिद्धिमें होता है । इन सबका जघन्य सौधर्मं स्वर्गमे दो सागरकी आयुके साथ जन्म होता है । स्नातक केवली भगवान हैं उनका उपपाद निर्वाण - मोक्षरूपसे होता है । (८) स्थान- - तीव्र या मंद कषाय होनेके कारण असंख्यात संयमलब्धिस्थान होते है; उनमेंसे सबसे छोटा संयमलब्धिस्थान पुलाक मुनिके और कषायकुशीलके होता है । ये दोनों एक साथ असंख्यात लब्धिस्थान प्राप्त करते हैं; पुलाक मुनि इन असंख्यात लब्धिस्थानोंके बाद आगे के लब्धिस्थान प्राप्त नही कर सकते । कषायकुशील मुनि उनसे आगेके असख्यात लब्धिस्थान प्राप्त करते है । यहाँ दूसरी बार कहे गये असंख्यात लब्धिस्थानसे कषायकुशील, प्रतिसेवनाकुशील और बकुश मुनि ये तीनो एकसाथ असंख्यात लब्धि - स्थान प्राप्त करते है । वकुशमुनि इन तीसरी बार कहे गये असंख्यात लब्धि स्थानमें रुक जाता है श्रागेके स्थान प्राप्त नहीं कर सकता; प्रतिसेवनाकुशील वहाँ से आगे असंख्यात लव्धिस्थान प्राप्त कर सकते हैं । कपायकुशील मुनि ये चौथी बार कहे गये असंख्यात लब्धिस्थानमेंसे
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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