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________________ ७१८ मोक्षशास्त्र हरानेके लिये, दूसरेका हास्य करनेके लिये आदि खोटे परिणामोंसे प्रश्न करना सो पृच्छना स्वाध्यायतप नहीं है। ___अनुप्रेक्षा-जाने हुए पदार्थोंका बारम्बार चितवन करना सो अनुप्रेक्षा है। आम्नाय-निर्दोष उच्चारण करके पाठको घोखना सो आम्नाय है। धर्मोपदेश-धर्मका उपदेश करना सो धर्मोपदेश है। प्रश्न-ये पाँच प्रकारके स्वाध्याय किसलिये कहे हैं । उत्तर--प्रज्ञाकी अधिकता,प्रशंसनीय अभिप्राय, उत्कृष्ट उदासीनता, तपकी वृद्धि, मतिचारकी विशुद्धि इत्यादिके कारण पांच प्रकारके स्वाध्याय कहे गये हैं ॥२५॥ सम्यक् व्युत्सर्गतपके दो भेद बतलाते हैं बाह्याभ्यंतरोपध्योः ॥२६॥ अर्थ-[बाह्याभ्यंतरोपध्योः] बाह्य उपधि व्युत्सर्ग और अभ्यंतर उपधिव्युत्सर्ग ये दो व्युत्सर्ग तपके भेद हैं । टीका १-बाह्य उपधिका अर्थ है बाह्य परिग्रह और आभ्यन्तर उपधि का अर्थ आभ्यन्तर परिग्रह है। दस प्रकारके बाह्य और चौदह प्रकारके अन्तरंग परिग्रहका त्याग करना सो व्युत्सर्ग तप है । जो आत्माका विकारी परिणाम है सो अन्तरंग परिग्रह है, इसका बाह्य परिग्रहके साथ निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है। २-प्रश्न-यह व्युत्सर्गतप क्यों कहा ? उचर-निःसंगत्व, निर्भयता, जीनेकी आशाका अभाव करने आदिके लिये यह तप है। ३-जो चौदह अंतरंग परिग्रह हैं, उनमें सबसे प्रथम मिथ्यात्व दूर
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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