SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 796
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१६ मोक्षशाख ज्ञानाम् ] आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य ग्लान, गरण, कुल, संघ, साधु ओर मनोज्ञ इन दश प्रकारके मुनियोंकी सेवा करना सो वैयावृत्य तपके दश भेद हैं । टीका १ - सूत्रमें आये हुये शब्दोंका अर्थ --- (१) आचार्य - जो मुनि स्वयं पाँच प्रकारके आचारको आचरण करें और दूसरोंको आचरण करावें उन्हें प्राचार्यं कहते हैं । (२) उपाध्याय - जिनके पाससे शास्त्रोंका अध्ययन किया जाय उन्हें उपाध्याय कहते हैं । (३) तपस्वी - महान उपवास करनेवाले साधुको तपस्वी कहते हैं ! (४) शैक्ष्य - शास्त्र अध्ययनमें तत्पर मुनिको शैक्ष्य कहते है । (५) ग्लान -- रोग से पीड़ित मुनिको ग्लान कहते हैं । (६) गण - वृद्ध मुनियोंके अनुसार चलनेवाले मुनियोंके समुदायको गर कहते हैं । (७) कुल (८) संघ ऋषि, यति मुनि और अनगार इन चार प्रकारके मुनियोंका समूह संघ कहलाता है । ( संघके दूसरी तरहसे मुनि, आर्यिका श्रावक और श्राविका ये भी चार भेद हैं ) - दीक्षा देनेवाले आचार्यके शिष्य कुल कहलाते है । - (९) साधु - जिनने बहुत समयसे दीक्षा ली हो वे साधु कहलाते हैं अथवा जो रत्नत्रय भावनासे अपनी आत्माको साधते हैं उन्हें साधु कहते हैं । (१०) मनोज्ञ -- मोक्षमागं प्रभावक, वक्तादि गुणोसे शोभायुक्त जिसकी लोकमें अधिक ख्याति हो रही हो ऐसे विद्वान मुनिको मनोज्ञ कहते हैं, अथवा उसके समान असंयत सम्यग्दृष्टिको भी मनोज्ञ कहते हैं । ( सर्वार्थ सि० टीका )
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy