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________________ ६६४ मोक्षशास्त्र नहीं होता | इसीलिये अन्य मनुष्योंके शरीरके ओर केवली भगवानके शरीरके समानता सम्भव नहीं । (६) शंका- देव आदिके तो आहार ही ऐसा है कि अधिक समय भूख मिट जाय, किन्तु केवली भगवान के बिना आहारके शरीर कैसे पुष्ट रह सकता है ? समाधान- - भगवानके असाताका उदय प्रति मंद होता है तथा प्रति समय परम औदारिक शरीर वर्गणात्रोंका ग्रहण होता है । इसीलिये ऐसी नोकर्म वर्गणाओंका ग्रहण होता है कि जिससे उनके क्षुधादिककी उत्पत्ति हो नही होती और न शरीर शिथिल होता है । (७) पुनश्च न श्रादिका श्राहार ही शरीरकी पुष्टताका कारण नही है । प्रत्यक्षमें देखो कि कोई थोड़ा प्रहार करता है तथापि शरीर अधिक पुष्ट होता है और कोई अधिक श्राहार करता है तथापि शरीर क्षीण रहता है । पवनादिकका साधन करनेवाले अर्थात् प्राणायाम करनेवाले अधिक कालतक आहार नही लेते तथापि उनका शरीर पुष्ट रहता है और ऋद्धिधारी मुनि बहुत उपवास करते हैं तथापि उनका शरीर पुष्ट रहता है। तो फिर केवली भगवानके तो सर्वोत्कृष्टता है अर्थात् उनके अन्नादिकके बिना भी शरीर पुष्ट बना रहता है इसमे आश्चर्य ही क्या है ? (८) पुनश्च केवली भगवान श्राहारके लिये कैसे जाँय तथा किस तरह याचना करे ? वे जब आहारके लिये जाँय तब समवशरण खाली क्यों रहे ? अथवा यदि ऐसा मानें कि कोई अन्य उनको आहार लाकर दे तो उनके अभिप्रायकी बातको कौन जानेगा ? ओर पहले उपवासादिककी प्रतिज्ञा की थी उसका निर्वाह किसतरह होगा, पुनश्च प्राणियोंका घातादि जीव-ग्रन्तराय सर्वत्र मालूम होता है वहीं आहार किस तरह करें ? इसलिये केवलीके श्राहार मानना सो विरुद्धता है । (e) पुना कोई यों कहे कि 'वे आहार ग्रहण करते हैं परन्तु किसीको दिखाई नही देता ऐसा अतिशय है' सो यह भी असत् है, क्योंकि
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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