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________________ ६७८ मोक्षशास्त्र निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध रखनेवाली ग्राहार पानीकी क्रिया भी नहीं होती । तो फिर दशमें गुरणस्थान में तो कषाय बिल्कुल सूक्ष्म होगई है और ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थान में तो कषायका प्रभाव होनेसे निर्विकल्प दशा जम जाती है; वहाँ खाने पीनेका विकल्प ही कहाँसे हो सकता है ? खाने पीनेका विकल्प और उसके साथ निमित्तरूपसे सम्बन्ध रखनेवाली खाने पीनेकी क्रिया तो बुद्धिपूर्वक विकल्प दशामें ही होती है; इसीलिये वह विकल्प और क्रिया तो छट्टो गुणस्थान तक ही हो सकती है किन्तु उससे ऊपर नही होती अर्थात् सातवें आदि गुरणस्थान में नही होती । अतएव दसवें, ग्यारहवें और बारहवे गुरंगस्थानमे तो उसप्रकारका विकल्प तथा बाह्य क्रिया अशक्य है | ४—दसवे सूत्रमें कहा है कि दस - ग्यारह और बारहवें गुणस्थानमें अज्ञान परीषहका जय होता है सो अब इसके तात्पर्यका विचार करते हैं । अज्ञानपरीषहका जय यह बतलाता है कि वहाँ अभी केवलज्ञान उत्पन्न नही हुआ, किन्तु अपूर्ण ज्ञान है और उसके निमित्तरूप ज्ञानावरणी कर्मका उदय है । उपरोक्त गुणस्थानोंमें ज्ञानावरणीका उदय होने पर भी जीवके उस सम्बन्धी रंचमात्र आकुलता नही है । दशवें गुरणस्थान में सूक्ष्म कषाय है किन्तु वहाँ भी ऐसा विकल्प नही उठता कि 'मेरा ज्ञान न्यून है' और ग्यारहवे तथा बारहवे गुणस्थानमें तो अकषाय भाव रहता है इसीलिये वहाँ भी ज्ञानकी अपूर्णताका विकल्प नहीं हो सकता । इस तरह उनके अज्ञान ( ज्ञान अपूर्णता ) है तथापि उनका परीषह जय वर्तता है । इसी प्रमाणसे उन गुणस्थानोंमें भोजन पानका परीषह जय सम्बन्धी सिद्धान्त भी समझना । ५- इस श्रध्यायके सोलहवें सूत्रमें वेदनीयके उदयसे ११ परीषह वतलाई हैं । उनके नाम-क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वघ, रोग, तृणस्पर्श और मल हैं । दसवें ग्यारहवे और बारहवें गुणस्थान में जीवके निज स्वभावसे ही इन ग्यारह परीपहोंका जय होता है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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