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________________ ६६६ मोक्षशास्त्र उस समय असंयमके निमित्तसे बन्धनेवाला कर्म नहीं बन्यता सो उतना संवर होता है। यह समिति मुनि और श्रावक दोनों यथायोग्य पालते हैं। (देखो पुरुषार्थ सिद्धय पाय गाथा २०३ का भावार्थ ) पांच समितिकी व्याख्या निम्नप्रकार है:ईर्यासमिति--चार हाथ आगे भूमि देखकर शुद्धमार्गमें चलना। भाषासमिति-हित, मित और प्रिय वचन बोलना। एषणासमिति-श्रावकके घर; विधिपूर्वक दिनमें एक ही बार निर्दोष आहार लेना सो एषणासमिति है। आदाननिक्षेपसमिति-सावधानी पूर्वक निर्जंतु स्थानको देखकर वस्तुको रखना, देना तथा उठाना । उत्सर्गसमिति- जीव रहित स्थानमें मल-मूत्रादिका क्षेपण करना। यह व्यवहारा व्याख्या है। यह मात्र निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध बतलाती है, परन्तु ऐसा नही समझना कि जीव पर द्रव्यका कर्ता है और पर द्रव्यकी अवस्था जीवका कर्म है ।। ५ ॥ __ दूसरे सूत्र में संवरके ६ कारण बतलाये है, उनमें से समिति और गुप्तिका वर्णन पूर्ण हुमा । अब दश धर्मका वर्णन करते है। दश धर्म उत्तमक्षमामार्दवाणवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाम्चिन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः॥६॥ अर्थ-[ उत्तमक्षमामार्दवावशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि ] उत्तम' क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम प्रार्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम सयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम प्राचिन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य ये दश [ धर्माः ] धर्म हैं। टीका १. प्रश्न-ये दश प्रकारके धर्म किसलिये कहे ? उत्तर-प्रवृत्तिको रोकनेके लिये प्रथम गुप्ति बतलाई; उस गुप्तिमें
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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