SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ६ भूमिका १६५३ (५) इस प्रकार अनेकान्त दृष्टिमें स्पष्टरूपसे सर्वांग व्याख्या कही जाती है । जहाँ व्यवहारनयसे व्याख्या की जाय वहां निर्जराका ऐसा अर्थ होता है:-'आशिकरूपसे विकारकी हानि और पुराने कर्मोका खिर जाना, किन्तु इसमें 'जो शुद्धिकी वृद्धि है सो निर्जरा है' ऐसा गभितरूपसे अर्थ कहा है। (६) अष्टपाहुडमें भावप्राभृतकी ११४ वी गाथाके भावार्थमें संवर, निर्जरा तथा मोक्षकी व्याख्या निम्न प्रकार की है 'पांचवां सवर तत्त्व है। राग-द्वेष-मोहरूप जीवके विभावका न होना और दर्शन ज्ञानरूप चेतना भावका स्थिर होना सो संवर है, यह जीवका निज भाव है और इससे पुल कर्म जनित भ्रमण दूर होता है । इस तरह इन तत्त्वोकी भावनामे आत्मतत्त्वकी भावना प्रधान है। इससे कर्मकी निर्जरा होकर मोक्ष होता है । अनुक्रमसे आत्माके भाव शुद्ध होना सो निर्जरा तत्त्व है और सर्वकर्मका अभाव होना सो मोक्ष तत्त्व है।' ६-इस तरह संवर तत्त्वमे आत्माकी शुद्ध पर्याय प्रगट होती है और निर्जरा तत्त्वमे आत्माकी शुद्ध पर्यायकी वृद्धि होती है । इस शुद्ध पर्याय को एक शब्दसे 'शुद्धोपयोग' कहते हैं, दो शब्दोसे कहना हो तो संवर और निर्जरा कहते हैं और तीन शब्दोसे कहना हो तो 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र' कहते हैं । सवर और निर्जरामे आशिक शुद्ध पर्याय होती है ऐसा समझना। इस शास्त्रमे जहाँ जहाँ संवर और निर्जराका कथन हो वहाँ वहीं ऐसा समझना कि आत्माकी पर्याय जिस अशमे शुद्ध होती है वह संवरनिर्जरा है। जो विकल्प राग या शुभभाव है वह सवर-निर्जरा नही। परन्तु इसका निरोध होना और आशिक अशुद्धिका खिर जाना-झड़ जाना सो संवर-निर्जरा है। ७-अज्ञानी जीवने अनादिसे मोक्षका बीजरूप सवर-निर्जराभाव कभी प्रगट नही किया और इसका यथार्थ स्वरूप भी नही समझा । सवरनिर्जरा स्वयं धर्म है, इनका स्वरूप समझे बिना धर्म कैसे हो सकता है ?
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy